आजाद नहीं है मीडिया -रविशंकर प्रसाद (पूर्व सूचना-प्रसारण मंत्री)

कुछ गैर राजनीतिक तत्व मीडिया की भूमिका को ठीक से समझ नहीं पाते या फिर प्रचार के भूखे होते हैं। नकारात्मक ही सही, प्रचार मिलने से इन्हें अपना उद््देश्य पूरा होता दिखाई देता है। इसलिए ये मीडिया को अकसर निशाना बनाते रहते हैं। मगर इन हमलों से मीडिया के काम-काज में भारी बाधा पहुंचती है। वे आतंकित होते हैं। लोकतंत्र की बेहतरी के लिए यह बहुत जरूरी है कि मीडिया भयमुक्त माहौल में काम कर सके। ऐसे किसी भी हमलावर की न सिर्फ कड़ी भर्त्सना होनी चाहिए, बल्कि इन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए।
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जहां मीडिया पर होने वाले किसी भी हमले की पूरी भर्त्सना और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, वहीं ऐसे अवसरों पर मीडिया को आत्मचिंतन भी करना चाहिए
मगर इन शौकिया हमलावरों से बहुत अधिक खतरनाक होता है संगठित हमला, जो राजनीतिक ताकतों की ओर से किया जाता है। कभी-कभार ये मजबूरी में मीडिया की स्वतंत्रता का राग अलापने लगें, लेकिन मीडिया की आजादी के प्रति इनकी प्रतिबद््धता हमेशा से संदिग्ध रही है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि आपातकाल के दौरान प्रेस की आजादी का गला किसने घोंटा। कुलदीप नैयर जैसे संपादकों को किसने जेल भिजवाया? संजय गांधी के खिलाफ कोई खबर न छप सके, इसकी व्यवस्था किसने करवाई? लोकनायक जयप्रकाश नारायण जब अस्पताल में भरती थे, तब भी उनकी खबर लोगों तक जाने से किसने रोकी? इसी तरह अपनी आलोचना से घबराकर अखबारों के खिलाफ हल्ला बोल किसने करवाया? कांग्रेस या मुलायम सिंह यादव और मायावती ही नहीं, वामपंथी दलों की हालत भी यही है। ये लोग चूंकि लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास नहीं रखते, इसलिए मीडिया पर बार-बार हमले होते रहते हैं। पश्चिम बंगाल में जा कर देखिए। वहां कोलकाता को छोड़ कर अंदरूनी इलाकों में जा कर देखिए। किसी की मजाल नहीं, जो स्थानीय भ्रष्टाचार के बारे में भी कोई खबर लिख सके।
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आज जमाना भूमंडलीकरण और बाजारीकरण का है। इसमें मीडिया को एक सवाल यह भी सोचना होगा कि उनका अखबार या चैनल सिर्फ एक उत्पाद है या फिर उसकी कोई सामाजिक प्रतिबद््धता भी है। अगर आप अपने को सिर्फ एक उत्पाद मानते हैं, तो फिर बाजार के हाथ में कठपुतली बनने के लिए भी तैयार रहना होगा। इस तरह खुद को उत्पाद मानने वाले मीडिया को लोकतंत्र के चौथे और बराबर महत्व के स्तंभ का सम्मान नहीं मिलता।
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जहां एक ओर मीडिया पर बाहर से होने वाले किसी भी हमले की पूरी भर्त्सना और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, वहीं ऐसे अवसरों पर मीडिया को आत्मचिंतन भी करना चाहिए। भारत दुनिया का सबसे मजबूत लोकतंत्र है। यहां के लोगों को मीडिया की विरासत पर और उसकी भूमिका पर विश्वास ही नहीं, गर्व भी है। भारतीय टेलीविजन और अखबार, दोनों की ही भूमिका प्रशंसनीय रही है। लोकतंत्र के जागरण और नवजागरण, दोनों में मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका रही है। लेकिन आज जब खबरों का फलक बहुत बढ़ गया है, ऐसे में, यह विचार करना और जरूरी हो गया है कि क्या दिखाया और छापा जाना है, और कितना दिखाया या छापा जाना है। जो दिखाया या छापा जा रहा है, उसका प्रभाव क्या होगा। अंगरेजी मीडिया की सीमाएं हैं, लेकिन हिंदी और क्षेत्रीय भाषा के मीडिया ने समाचार को आम लोगों तक पहुंचा कर भारत के लोकतंत्र को मजबूत करने में बहुत बड़ा काम किया है। मेरा स्पष्ट मानना है कि मीडिया की आजादी में सरकार का कोई दखल नहीं होना चाहिए। मैं तो कहूंगा कि आजाद मीडिया अगर थोड़ा निरंकुश भी हो, तो उसे शासन-नियंत्रत मीडिया से बेहतर ही माना जाएगा। आज के सूचना युग में सूचना को ही सबसे बड़ी ताकत माना गया है। इसलिए मीडिया को अपने नैतिक बल की मजबूती को समेटने के लिए भी लगातार प्रयास करने चाहिए।

स्टार और मीडिया

सरकार मीडिया के स्टिंग ऑपरेशनों पर लगाम लगा रही है। सनसनीखेज पत्रकारिता की बात छोड़ दें, तो कई बार अंदर की खबरें भी सितारों को बौखला देती हैं, जबकि सितारों को गाहे-बगाहे मीडिया की जरूरत पड़ती है। गायक सोनू निगम ने मीडिया केजरिए ही अपनी बात रखी। परेशानी में भले ही स्टारों को मीडिया की याद आती हो, लेकिन कई सफल सितारे मीडिया की निजी जिंदगी में घुसपैठ को कोसते है। उन्हें समझना चाहिए कि एंटरटेनमेंट रूपी गाड़ी के ये दोनों पहिए हैं, जिन्हें साथ-साथ चलना जरूरी है। नजरिया विवेक भटनागर का

हाल ही में सोनू निगम ने एक पत्रकार पर अवांछित मैसेज भेजने और उन्हें इस्तेमाल करने के प्रयास का आरोप लगाया था... फिर एक मॉडल ने बॉबी डार्लिंग पर ऐसा ही कुछ आरोप लगाया... ये खबरें तमाम चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज बनीं, उन्होंने टीआरपी बटोरी और अखबारों ने 'अपने गिरेबान' की बात होने पर भी अपने पेशे का धर्म निभाया। उन्होंने इस खबर केसाथ बॉलीवुड के 'मेल कास्टिंग काउच' को भी उजागर करने का प्रयास किया, क्योंकि मीडिया केलिए यह एक नई-सी बात थी। इन मामलों में सचाई जो भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि लोग सितारों की निजी जिंदगी से जुड़ना चाहते हैं। वे जिनकेफैन हैं, उनकी कार्यशैली को जानना चाहते हैं। बॉलीवुड के अंदर के व्यवहार को जानना चाहते हैं। जब उन्हें इस तरह की खबरें मिलती हैं, तो जाहिर है प्राइम टाइम की टीआरपी बढ़ेगी ही। हालांकि सोनू निगम खुद ही मीडिया के सामने आए, लेकिन इधर ज्यादातर सितारों की शिकायत यह है मीडिया सितारों की जिंदगी में ज्यादा ही दखलंदाजी करता है। यह बात तब सामने आई थी, जब सलमान खान ने अपनी प्रेमिका ऐश्वर्य राय केसाथ बदसलूकी की थी, जब करीना कपूर और शाहिद कपूर का एक मोबाइल वीडियो एक चैनल पर चला दिया गया था, या तब, जब आमिर खान ने गुपचुप तरीके से दूसरी शादी की, या तब जब अभिषेक बच्चन ने ऐश्वर्य को जीवन संगिनी बनाया... ऐसे और भी न जाने कितने मौकेहैं, जो समय-समय पर आते रहे हैं। इसके बावजूद हम मीडिया के उस दर्शक वर्ग का क्या करें, जो अपने सितारों की जिंदगी को जानने को बहुत आतुर हो चुका है। वह जानना चाहता है कि जॉन और बिपाशा की अटूट दोस्ती में दरार आने का क्या कारण है, वह जानना चाहता है कि चालीस पार कर चुके सलमान खान आखिर कब शादी करेंगे? वह अपने दोस्तों के बीच चर्चा करता है कि अभिषेक-ऐश्वर्य की शादी में किस-किस को बुलाया गया है, और जिसे नहीं बुलाया गया है, उसे क्यों नहीं बुलाया गया, यह अटकल भी लगाता है। ऐसे लोग भी हैं, जो यह प्रार्थना करते हैं कि उनका हीरो संजय दत्त कोर्ट से बेदाग होकर निकले। लोग यह भी सोचते हैं कि जब सोनू निगम जैसे स्थापित सिंगर के साथ ऐसा है, तो न्यूकमर्स का क्या होता है? यानी बॉलीवुड के सितारों के साथ जनमानस जुड़ा हुआ है और मीडिया सिर्फ अपना काम करता है उनकी जिज्ञासा शांत करके। यह सही है कि मीडिया को सितारों की जिंदगी की निजता का सम्मान करना चाहिए, लेकिन जहां तक खबर का सवाल है, उस खबर की तह तक जाकर उसे दिखाना मीडिया का सबसे बड़ा 'धर्म' है।
ऐश्वर्य को मंगली बता कर अभिषेक का दिल दुखाने वाले ज्योतिषियों और उन्हें दिखाने वाले मीडिया पर अमिताभ नाराज हो सकते हैं, लेकिन ऐसा भी कई बार हुआ है, जब सितारे जानबूझ कर खुद मीडिया की खबर बने। उन्होंने मीडिया का इस्तेमाल किया। इसकेउलट मीडिया के कहने पर सितारों ने खुद अपनी छवि खराब की। लेकिन यह सब पीत-पत्रकारिता का हिस्सा है, जो गॉसिप पर टिका हुआ है। सिर्फ इसी से गॉसिप राइटरों की रोटी चल रही है। सिर्फ इसलिए, क्योंकि अपने सितारों के किस्से लोग चाव से पढ़ना चाहते हैं। फिल्मकार महेश भट््ट कहते हैं, 'मैं ऐसे कई सेलीब्रिटीज को जानता हूं, जो अपने पब्लिसिस्ट की सलाह पर अपनी जिंदगी को गलत तरीके से पेश करते हैं। ऐसे सेलीब्रिटीज से मेरा कहना है कि वे इस मामले में ईमानदारी बरतें और जैसे वे हैं, वैसा ही दिखने का प्रयास करें।' हम गॉसिप पत्रकारिता या स्टिंग आपरेशन की बात नहीं कर रहे हैं। वैसे भी सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए कंटेट कोड की हाल ही में घोषणा कर दी है, जिससे स्टिंग ऑपरेशनों पर लगाम लग सकती है। जहां तक खबरों की बात है, मीडिया हर कीमत पर स्टारों की हर छिपी हुई खबर को बाहर लाना चाहता है, लेकिन स्टारों केभीतर भी एक आम इनसान होता है, जो चाहता है कि घर की बातें चारदीवारी में ही रहें तो बेहतर है। संबंध विच्छेद की खबरें, रिश्तों में खटास की खबरें या ऐसी ही निजी खबरें बाहर आने से परदे के माध्यम से बनी छवि को नुकसान पहुंचता है। लेकिन सच तो सच ही होता है। सैफ और अमृता के संबंधों में बिखराव की खबरें मीडिया में दोनों के खंडन करने पर भी आ गई थीं। लेकिन कुछ हफ्तों बाद उन दोनों ने सार्वजनिक रूप से अलगाव की घोषणा की। हाल ही में यश चोपड़ा कैंप सकते में आ गया था, जब यह कैंप फिल्मों के इतर खबरों में आ गया। खबर यश चोपड़ा और उनकेबेटे आदित्य चोपड़ा केबीच कथित झगड़े की थी। कहा गया, झगड़े की जड़ में आदित्य की प्रेमिका रानी मुखर्जी हैं। जब मीडिया छिपे हुए सच को दिखाता है तो स्टार अवाक रह जाते हैं।
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ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श के अनुसार, 'चूंकि सितारों केफैन्स की एक बड़ी संख्या होती है और पब्लिक फिल्मों या मीडिया के माध्यम से ही उनकी छवि बनाती है। ऐसे में अपने सितारों के बारे में हर बात जानना उनके प्रशंसकों का अधिकार है।'कुछ सितारे ऐसे भी हैं, जो निजी सवालों पर मीडिया से नाराज हो जाते हैं। मीडियाकर्मियों से मारपीट करने की घटनाएं भी पूर्व में हो चुकी हैं। महेश भट््ट का कहना है, 'यह तो सफलता की कीमत है, जो हर स्टार को चुकानी पड़ती है। यह बात स्टार को सफल होने से पहले ही समझ लेनी चाहिए। उसे तय करना होगा कि उसे प्राइवेसी में रहकर मिस्टर या मिस एवरेज बने रहना है या फिर सफलता की कीमत प्राइवेसी को तोड़ना होगा।'सफल होने केबाद स्टार अपनी निजता को नहीं तोड़ना चाहता। वह मीडिया की दखलंदाजी नहीं बर्दाश्त करता, लेकिन उन लोगों को क्या कहेंगे, जो मीडिया के नजरअंदाज करने पर उससे खफा रहते हैं। क्योंकि बॉलीवुड में माना जाता है कि जिस स्टार के आगे-पीछे कैमरा नहीं घूमता, तो समझो कि उसका कैरियर अब बाकी नहीं बचा।फिल्मी सितारों और मीडिया केबीच प्यार-तकरार केरिश्ते शायद ही खत्म हों। दोनों को यह समझना चाहिए कि दोनों को आगे बढ़ने केलिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना होगा। स्टार न्यूज आइटम हैं और मीडिया का काम उन्हें पेश करना है। महेश भट््ट राय देते हैं, जो लोग मीडिया पर नाराज होते हैं, उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि मीडिया के कैमरों की फ्लैश लाइट कभी किसी एक पर लंबे समय तक नहीं टिकती, वह किसी और पर पड़ने लगती है। मीडिया को भी तो कुछ नया चाहिए।भले ही बड़े स्टार मीडिया के उन तक पहुंचने को उनकी दखलंदाजी कहें, पर सोनू निगम ने खुद मीडिया (भले ही मीडिया वाले के खिलाफ हो) के पास पहुंच कर यह तो साबित किया ही है कि दोनों को ही एक-दूसरे की जरूरत पड़ती है। क्या स्टारों को तभी मीडिया भला लगता है, जब उन्हें उसकी जरूरत होती है?
 

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